निहार के दो पल तुझे रह जाना
जीने का यही सहारा है l
मै बहती सरिता का पानी
जिसका तू किनारा है ll
ज़िन्दगी की राहे सब मेरी कैसे
तुझको देख यू बदल गयी,
अंजुरीयो में कैद उम्मीदे
अंगुलियों से फिसल गयी,
अधरो की ये बंजर बेलिया
छुअन तेरी क्यो याद करे,
नैनो के ये तन्हा कमरे
दर्शन को तेरी फरियाद करे,
हाथो की ये बेजान लकीरें
ढूंढे ऊष्मा तेरी हाथो का,
और शामो का ये अकेलापन
खोजे साथ तेरी बातो का l
अब दर्द के प्याले साथ लिए
रोता दिल बेचारा है l
मै बहती सरिता का पानी
जिसका तू किनारा है ll
आज लेटे लेटे फिर ख़्याल
वो आ गया,
दर्द के खाली प्यालो में फिर
शमा सुलगा गया,
बढ़ते बढ़ते गम फिर
नैनो से यू बह गया,
छलनी ये दिल है और
क्या
बाकी अब रेह गया l
दस्तरस है ज़िन्दगी मेरी
उन आँखो की चाल को,
उन भूरे नैनो की चमक
काले ज़ुल्फो के जाल को l
मुसलसल ज़िन्दगी तुझसे
इस कदर यू जुड़ गयी,
कि हर लम्हा ज़िन्दगी का,
राह की गुरबत बन गया l
मै तुझको पाने की बस
इबादत में रह गया,
कोई मुकद्दर से भरा,
तेरी चाहत बन गया l
किनारे से हटकर बहती नदियाँ
क्या तुझको ये गवारा है l
-मयंक